Wednesday 17 October 2012

शब्द-चित्र : मुझे याद कर लेना


शब्द-चित्र : मुझे याद कर लेना

मीडिया का एक विद्दार्थी आज चुक गया क्योंकि उसके पास एक कैमरा नहीं था। 2003 मोडल के मोबाईल में एक साधारण सा कैमरा है भी तो व्यक्तिगत नैतिकता आड़े आ गयी। वह सोंच रहा है कि बाबा आदम के जमाने के लेखकों की बराबरी तो नहीं कर सकता लेकिन शब्द-चित्र खींचने का प्रयास तो कर ही सकता है।


      पटना शहर की सबसे चकाचक, मशहूर और संभवतः सबसे चौड़ी सड़क को बेली रोड कहा जाता है। डाकबंगला चौराहे से शुरू होकर सगुना मोड़ तक बीच में इनकम टैक्स भवन, हाई कोर्ट, पटना वीमेंस कालेज, सचिवालय, बिहार लोक सेवा आयोग, चिड़ियाखाना, गोल्फ क्लब, जे0डी0वीमेंस कालेज तक ज्यादातर सरकारी परिसर हैं। इसके बाद शेखपुरा, राजाबाजार, रूकनपुरा आदि रिहायशी इलाके हैं। इस सड़क से समांतर तीन कि0मी0 उत्तर अशोक राजपथ है और दो कि0मी0 दक्षिण खगौल-पटना स्टेशन-गुलजारबाग स्टेशन रोड, जिसे पुरानी बाइपास भी कहा जाता है।

      प्रतिदिन पटना के तमाम रईसों की दस हजार से अधिक कारें और एक लाख के लगभग दुपहिया-तिनपहिया गाड़ियाँ पटना की लाइफलाइन कही जाने वाली इस सड़क से दिन में गुजरती हैं, तो रात मे दस हजार से अधिक ट्रक। इसी सड़क पर शास्त्रीनगर-थाना-रोड और जे0डी0विमेंस कालेज के बीच शेरूल्लाहपुर नामक मुहल्ले की निकास गली है। उस दिन मंगलवार था। सुबह के दस बजे थे। इस मोड़ पर पानी की भूमिगत पाइप फुटी हुई थी। एक आदमी अपनी टोरिक्‍शा धो रहा था। वहीं कुछ बच्चे अपने सपनों के जलविहार मे जलक्रिड़ा कर रहे थे।
      उस सड़क-सुलभ आम-जनता-तालाब के एक ओर एक कचरा चुननेवाले किसी व्यक्ति का चुने गये कचरे का बड़ा-सा गट्ठर रखा हुआ था। उसके ऊपर सुखाने के लिए कुछ कपड़े रखे हुए थे। आटोरिक्‍शा की आड़ लेकर एक आदमी नहा रहा था। वह नंग-धड़ंग था पुर्णतः। शायद उसी आदमी के कपड़े सूख रहे थे गट्ठर के ऊपर। पटना शहर में भी दिख रहा था नंगा नहाएगा क्या निचोड़ेगा क्या ?

      उस व्यक्ति को देखकर यह एहसास हुआ कि जिस इंडिया और भारत के बीच गहरी खाई क जिक्र होता है, वह क्या है। इस खाई को पाटने की जिम्मेवारी हम युवाओं पर ही है। परंतु आज क युवा तो बस सप्तरंगी सपनों को संजोए हवाई उड़ान भरना चाहता है, चाहे उस उड़ान से सुखे पत्तों की तरह अपने साथ कुछ और लोगों को लेकर बिखर क्यों न जाए।
      आज के शहरी युवाओं को मोटरसाईकिल से तेज रफ्तार से भगाने की जैसे लत लग गई है। अपनी इस लत में वे इस कदर मदहोश हैं कि उन्हें इंसान की वजुद का अधार मानवता भी नहीं दिखती। उस दिन ऐसा ही मगरूर बाईकर उस गरीब के गट्ठर को ठोकर मारते हुए चला गया। आज्ञाकरी घोड़े की तरह बाइक भी उछलकर पार हो गया। लेकिन उस गट्ठर का सामान, मुँह अंधेरे उठकर खाली पाँव घुम-घुमकर चुना हुआ कचरा, सड़क पर दूर-दूर तक फैल गया करीब पचास फीट की दुरी में।
      फिर क्या था, पेट के आगे इज्जत कौन देखता है। उस गरीब को कपड़े कौन देता जिसे पहनकर वह अपने कुड़े को समेटने जाए। जैसे ही उसने देखा कि उसकी उस दिन की कमाई कारों तले रौंदी-उड़ाई जा रही है वह जन्मभेष में ही बिजली की स्फूर्ति से कुड़े चुनने लगा। कारें धीमी हो गयीं लेकिन नजारा उद्वेलित करने वाला था। लोगों को जाम दिख रहा था। वातानुकुलित कारों के अंदरवालों को वह आदमी पागल दीख रहा था, जो विकसित लोगों को अपना नंगापन दिखा रहा था। पर सभ्य समाज को उसके नंगेपन में अपने नंगेपन की कोई झलक नहीं दिख रही थी। लोगों को चमचमाती कारों वाली बेली रोड पर बिखरे हुए कचरे सड़क की खुबसुरती को खराब करते हुए दिख रहे थे। गाड़ियों पर बैठे हजारों रुपए प्रतिदिन कमाने वालों को बीस रुपे प्रतिदिन कमाने वाले का परिश्रम पागलपन दिख रहा था। विकसीत बिहार के मुँह पर एक जबर्दस्त थप्पड़ लगा रहे थे उसके पाँच मिनट की नग्न-दौड़।

      वह इधर-उधर दौड़ता-भागता और कचड़े को उठा-उठाकर वापस बोरे में भरता। उसकी पाँच मिनट की भागमभाग में सड़क पर पाँच सौ मीटर लंबा जाम लग गया था। नौजवान बाइकरों को हुँकार भरने और अश्लील हुल्लड़्बाजी करने का तो जैसे मौका ही मिल गया था। वह गरीब बुदबुदा रहा था मेरी यही कमाई है। यही आज की रोटी का आसरा है भले ही बीस रुपये का ही हो। हे नौजवान! मेरी मदद तो तुम कभी नहीं ही करोगे, न ही भगवान करेंगे। पर नौकरी में ज्वानिंग के एक घंटे पहले कभी तेरी फाइल इसी तरह छितरा जाए या नदी में गिर जाए तो मुझे याद कर लेना। वेतन के पैसे पाकेटमार ले जाए तो मुझे याद कर लेना। एक वोट से हार जाना तो मुझे याद कर लेना। रेस्टुरेंट में खाने के टेबुल पर बैठे रहोगे और भुकंप आ जाए तो मुझे याद कर लेना। नक्सलवादी क्षेत्रों में बदली हो जाए और बम से घायल रहोगे तब मुझे याद कर लेना।
 कृपया अपनी प्रतिक्रिया हमें जरुर दें,

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