Saturday 1 December 2012

बिहार में छेड़खानी की वारदातें घट गयी हैं – ऐसा कहते कहते फौर्च्युनर गाड़ीयां बढ़ गयी है।


जो मैने, मेरी पत्नी ने और वहां खड़े पुलिसकर्मीयों ने देखा उसे सिर्फ स्त्रियों के प्रति शारीरिक क्रुरता के दायरे मे रखा जा सकता है। मैने और मेरी पत्नी ने गिनती जरूर पढ़ी है, और ऐसी घटनाओं की संख्या अगले एक घंटे मे सिर्फ उसी गेट पर थी-पांच।

छठ के दिन जो कलेक्टेरियट घाट पर हुआ, रावण-वध के दिन उसे मै गांधी मैदान में झेल आया हुं।


रावण-दहन के तीस मिनट बीतते-बीतते मेरे साथ की महिलाओं-बच्चों का धैर्य जवाब दे चुका था और वे वहां उपलब्ध पावभाजी से लेकर आइसक्रीम तक सबकुछ चख चुके थे। मुझे उनकी बात माननी पड़ी और बाहर निकल रही भीड़ के साथ हो लेना पड़ा, उसी गेट की ओर जिससे होकर आया था।

रावण के नौ सिरों का उसे आग देने वाले वंशजों ने घोटाला कर दिया

साल 2012 के विजयादशमी के दिन पटना के गांधी-मैदान में होनेवाले रावण-वध के कार्यक्रम को देखने हम सपरिवार और गांव से आये कुछ पड़ोसी परिवारों के साथ शाम के चार बजे गाँधी मैदान पहुंचे। पटना में रहने के बावजुद ठीक 20 वर्ष बाद इस कार्यक्रम को देखने का संयोग बन सका।

एक रुपये के अखबार को दस रुपये की चीन-आयातित पोलिथीन शीट ने हरा दिया


अखबार गरीबों के विकास कि चाहे जितनी चिन्ता करते हों, लेकिन स्टेशन पर गरीबों के बिछावन के तौर पर जरुर भारत-प्रसिद्ध था। सबसे कम किमत में मिलनेवाला अखबार गरीब तथा निम्न-मध्यवर्ग का चहेता इसलिए भी था क्योंकि वह थाली-प्लेट, ओढ़ना-बिछावन भी बन जाता था। पाठकों का एक वर्ग इसी बहाने अखबार खरीदता था, कुछ पन्ने बिछाता था, कुछ पन्ने पढ़ता और कुछ पर खाना खा लिया करता था।