Saturday, 1 December 2012

बिहार में छेड़खानी की वारदातें घट गयी हैं – ऐसा कहते कहते फौर्च्युनर गाड़ीयां बढ़ गयी है।


जो मैने, मेरी पत्नी ने और वहां खड़े पुलिसकर्मीयों ने देखा उसे सिर्फ स्त्रियों के प्रति शारीरिक क्रुरता के दायरे मे रखा जा सकता है। मैने और मेरी पत्नी ने गिनती जरूर पढ़ी है, और ऐसी घटनाओं की संख्या अगले एक घंटे मे सिर्फ उसी गेट पर थी-पांच।


चौदह लोगों की मेरी टोली के बाकि सदस्यों का इंतजार मैं उसी सामने वाले भवन के कैम्पस में खड़े होकर करने लगा। बच्चों को एक ठेले के पीछे खड़ा कर मेरी नजरे बाकी सदस्यों को ढूंढ़ने में लग गयी। वे लोग भी भीड़ के बीच मुझे खोज रहे थे और अगले आधे घंटे में एक-एक कर मिलते गये।
गेट पार करते समय लगभग बीस साल की एक लड़की मुझसे चार-पांच व्यक्तियों से आगे चल रही थी, गेट से बाहर निकलते ही भयानक आवाज में चिल्ला उठी। अपने परिजनों को संभालने की चिंता के बीच उसकी आवाज सुनकर मैने नजर घुमायी तो कुछ लड़कों को भागते देखा। कुछ मीटर की दूरी से मेरी श्रीमतीजी ने मुझे आवाज दिया, मैने उन्हे देखा तबतक भीड़ मुझे सामने वाले भवन के पास धकेल चुकी थी। मेरी श्रीमतीजी जब मुझसे मिलीं तो बताया कि वह लड़की दर्द के मारे बेहोश हुई जा रही थी और उसके साथ आया एक पुरुष और कम उम्र की लड़की उसे टांग कर ले गये।
दस मिनट के इंतजार के बाद अपनी गांववाली पड़ोसन को ढूंढ़ने हेतु घुमने लगा तो एक बूजुर्ग महिला अपने फट चुके कानों से खुन पोंछते हुए रो-रोकर गालीयां दिए जा रही थी। किसी ने कनबाली खींच ली थी। आगे बढा तो एक मां अपनी बेटी को खरी-खोटी सुना रही थी – “कहीं कुछ हो जाता तो तुम्हारे अब्बा को क्या जवाब देते, देश भर के छोकरों को पटना में आकर *** करने की छूट है”। (हमारी 70 साल की बूढ़िया शिक्षा व्यवस्था की वजह से देश, राज्य और राज समानार्थी बने हुए हैं)
पैदल चलते इनकम टैक्स गोलम्बर तक आने के बाद ही टेम्पो मिल पाया। लेकिन पूरे रास्ते स्त्री-हिंसा में कमी के आंकड़ों पर चिन्तन चलता रहा। साथ ही स्त्री सशक्तीकरण के पश्चिम प्रायोजित विमर्श पर भी। गांधी जी के शब्द तो राजनीति की दुकान में बिकते बिकते बिकाऊ से आगे उबाऊ हो गये हैं - लेकिन इतना जरुर हो गया है कि गांधी के समय में महिलाएं इतनी सशक्त थीं कि पूरे देश का धान ढेंकी में कुट डालती थी, लेकिन आज पुरुष इतना कमजोर हो गया है कि व्यवस्था के विरुद्ध बोल भी नहीं पाता।

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