साल 2012 के विजयादशमी के दिन पटना के गांधी-मैदान में होनेवाले रावण-वध के
कार्यक्रम को देखने हम सपरिवार और गांव से आये कुछ पड़ोसी परिवारों के साथ शाम के
चार बजे गाँधी मैदान पहुंचे। पटना में रहने के बावजुद ठीक 20 वर्ष बाद इस
कार्यक्रम को देखने का संयोग बन सका।
मैदान में दाखिल होने के समय ही ट्विन टावर के सामने वाले गेट पर भीड़ का सामना
करना पड़ रहा था। मैने अपने साथ के परिजनों से उसी समय यह कह दिया की कार्यक्रम
समाप्त होने के एक घंटे के बाद ही बाहर निकलना सुविधाजनक रहेगा।
खैर! किसी तरह चीनी पोलिथीन शीट बिछाने की जगह मैदान के बीच में मिल पायी, तो
वहीं पर सभी महिलाओं को बाल-बच्चे समेत स्थिर से रहने का निर्देश दे, चीनियाबेदाम
देकर निकल पड़ा मुआयना करने।
अरे! यह क्या! रावण कौन है, सभी के एक ही सिर है।
पास खड़े बुजुर्ग दर्शक से पुछा तो
उन्होने बजाए यह बताने के, कि रावण कौन है, यह बताया कि घोटाले के इस माहौल में
रावण के नौ सिरों का भी घोटाला हो गया तो कौन सी बड़ी बात हो गयी। उनके साथी ने
टिप्पणी की – रावण को आग देने वालो ने रावण के वंशज होने का सबुत दे दिया है। रावण
के नौ सिर भी गायब है और प्रशासन द्वारा बनाया जाने वाला दर्शक-दीर्घा आबादी और
आगन्तुकों के अनुपात में बढ़ने के बजाए साल दर साल छोटा ही होता जा रहा है। लोगों
ने रावण का वंशज होने का फर्ज निभाया है, वह उतनी राक्षसता न सही - घोटाला तो कर
ही सकता है।
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